सुबह-ओ-शाम एक ही काम करता हूँ।
दिन रात यूँ ही तमाम करता हूँ।
क्या रह गया अब इस ज़िन्दगी में,
सोचकर यही वक्त के नाम करता हूँ।
मिला जो किस्मत से, नहीं सहेज पाया,
अनमोल खजाना मुफ्त नीलम करता हूँ।
रोता हूँ, मचलता हूँ, भरी महफ़िल में,
बेवजह भरी महफिल में, ताम-झाम करता हूँ।
जान पाएंगे लोग, एकदिन यह हकीकत,
बेदाम के रहे ज़िन्दगी, संग्राम करता हूँ।
हो रहा है, मेरे आसपास जो उल्टा-सीधा,
कोई कहे वाह में तो रामराम करता हूँ।
संत कुमार मालवीय
सोमवार, 12 जनवरी 2009
प्यारी सी लड़की
जहाँ का प्यार समेटे
स्नेह की चादर लपेटे
दिखने में भोली सी/वो प्यारी सी
पल में चंचलता
पल में गंभीरता
बैटन की सयानी
बैटन से अज्ञानी/वो प्यारी सी लडकी
माँ की प्यारी
बाप की दुलारी
स्वयं नाचती
सब को नाचती/वो प्यारी सी लडकी
कठपुतली सी
उछल- कूद करती सदा
कभी हंसाती
कभी रुलाती/वो प्यारी सी लडकी।
आश्वस्त करती सभी को
भविष्य अपना संवारती
बस्ता ले स्कूल को जाती/वो मेरी प्यारी सी लड़की।
-संत कुमार मालवीय संत
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